झारखंड।
आपको बता रहे है एक अनोखी शादी के बारे में, ऐसी शादी जिसे सुनकर आप चौक
जाएंगे। एक 7 साल के लड़के की शादी कुत्ते के साथ की गई, जी हां आप बिल्कुल
सही पढ़ रहे है। एक लड़के की शादी कुत्ते से। वो भी कहीं और नहीं अपने ही
देश में। जी हां ये कहानी है झारखंड के ग्रामीण इलाके की, जहां एक सात साल
के लड़के को कुत्ते से शादी करने को मजबूर होना पड़ा। ये इसलिए किया गया
क्योंकि उसके राशि में लिखा था कि उसकी पहली पत्नी जल्द मर जाएगी। इस घटना
को टालने के लिए घर वालों ने मुकेश केराई की शादी कुत्ते से कर दी।
क्यों की जाती है कुत्ते से शादी
जब पहली बार बच्चे के दांत आते हैं तो घरवालों के लिए, माता-पिता के लिए यह खुशी का क्षण होता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके लिए बच्चों का दांत आना परेशानी की बात हो जाती है। मूलत: ओडिशा और झारखंड के रहने वाले संताल आदिवासियों के लिए यह घड़ी नई चिंता लेकर आती है। इस समुदाय में ऐसी मान्यता है कि अगर संथाल बच्चों के ऊपर के दांत पहले आ जाएं, तो बच्चे के जीवन में मृत्युदोष सताने लगता है। इस दोष से बचने के लिए यह लोग एक अनोखा अनुष्ठान करते हैं, जिसमें बच्चों की शादी कुत्ते से कर दी जाती है। अगर यह दोष किसी लड़के पर है तो मादा, लड़की हो तो नर पिल्ले के साथ धूमधाम से यह संस्कार पूरा किया जाता है।
कुत्ते के अलावा पेड़ से भी होती है शादी
ऐसी शादियों का दौर सक्रांति से लेकर होली के दूसरे दिन तक निभाया जाता है। इस अनोखी शादी को संथाल आदिवासी सेता बपला कहते हैं, जिसमें सेता का अर्थ कुत्ता और बपला यानी शादी होती है। इस समुदाय में कुत्ते के अलावा बच्चों की शादी पेड़ से भी करके यह दोष मिटाया जाता है। इसमें पेड़ से बच्चों की शादी को सेता बपला की बजाय दैहा बपला कहते हैं, जिसमें दैहा एक ऊंचा पेड़ होता है। कहते हैं सेता बपला या दैहा बपला के बाद बच्चे के जीवन का संकट कुत्ते या उस पेड़ पर चला जाता है, जिसे गांव से कहीं दूर छोड़ दिया जाता है। हालांकि मेडिकल विशेषज्ञ इसे अंधविश्वास बताते हैं।
जब पहली बार बच्चे के दांत आते हैं तो घरवालों के लिए, माता-पिता के लिए यह खुशी का क्षण होता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके लिए बच्चों का दांत आना परेशानी की बात हो जाती है। मूलत: ओडिशा और झारखंड के रहने वाले संताल आदिवासियों के लिए यह घड़ी नई चिंता लेकर आती है। इस समुदाय में ऐसी मान्यता है कि अगर संथाल बच्चों के ऊपर के दांत पहले आ जाएं, तो बच्चे के जीवन में मृत्युदोष सताने लगता है। इस दोष से बचने के लिए यह लोग एक अनोखा अनुष्ठान करते हैं, जिसमें बच्चों की शादी कुत्ते से कर दी जाती है। अगर यह दोष किसी लड़के पर है तो मादा, लड़की हो तो नर पिल्ले के साथ धूमधाम से यह संस्कार पूरा किया जाता है।
कुत्ते के अलावा पेड़ से भी होती है शादी
ऐसी शादियों का दौर सक्रांति से लेकर होली के दूसरे दिन तक निभाया जाता है। इस अनोखी शादी को संथाल आदिवासी सेता बपला कहते हैं, जिसमें सेता का अर्थ कुत्ता और बपला यानी शादी होती है। इस समुदाय में कुत्ते के अलावा बच्चों की शादी पेड़ से भी करके यह दोष मिटाया जाता है। इसमें पेड़ से बच्चों की शादी को सेता बपला की बजाय दैहा बपला कहते हैं, जिसमें दैहा एक ऊंचा पेड़ होता है। कहते हैं सेता बपला या दैहा बपला के बाद बच्चे के जीवन का संकट कुत्ते या उस पेड़ पर चला जाता है, जिसे गांव से कहीं दूर छोड़ दिया जाता है। हालांकि मेडिकल विशेषज्ञ इसे अंधविश्वास बताते हैं।
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