आपने
अब तक कई तरह के रीति-रिवाजों के बारे में सुना होगा, लेकिन ऎसा नहीं,
क्योंकि यह सबसे अनोखा और भयानक है। हम आपको बता रहे है दुनिया के एक ऎसे
देश के बारे में जहां प्रचलित एक अनोखी और भयावह पंरपरा के बारे में जहां
एक जिंदा इंसान अपने आपको ममी बना देता है। इसके लिए उसे अपने आपको जीते जी
ही कीड़ों-मकोड़ों का भोजन बनाना होता है।
जापान में होता है ऎसा-
जिंदा
इंसान को ममी बनाने की यह परंपरा जापान में हैं। इस देश के उत्तरी भाग में
कई ऎसे बौध मठ है जिनमें सोकूशिंबूत्सु नाम से जाने जाने वाले बौद्ध
भिक्षु ऎसा करते हैं। इस संप्रदाय में सैंकड़ों सालों से होता आ रहा है तथा
कई भिक्षु जीते जी अपने आपको ममी बना चुके हैं। हालांकि ऎसा करने में सफल
होने वाले भिक्षु को भगवान के बराबर दर्जा दिया जाता है और उसकी पूजा होती
है।
बौद्ध भिक्षु ने शुरू की थी परंपरा-
जीते
जी इंसान को ममी बनाने की यह परंपरा आज से लगभग 1000 साल पहले कूकाई नाम
के एक पुजारी ने वाकायामा प्रांत के माउंट कोया स्थित मंदिर से शुरू की थी।
कूकाई ने ही बौद्ध धर्म में शिंगोन नाम से एक पंथ की स्थापना भी की थी।
इसके बाद इस पंथ को मानने वाले बौद्ध भिक्षुओं में इस परंपरा का चलन बढ़ता
ही गया और एक के बाद एक सैंकड़ों जिंदा भिक्षु ममी बनते गए।
पहले करनी होती है प्रेक्टिस-
जिंदा
इंसान का ममी बनना कोई आसान काम नहीं, बल्कि इसके लिए पहले कई सालों तक
प्रेक्टिस करनी होती है। जिस भिक्षु को ममी बनना होता है उसे पहले इसकी
घोषणा करनी होती है। इसके बाद से ही उसे अगले 1000 दिनों तक स्पेशल डाइट पर
रहना होता है जिसमें उसे खाने के लिए फली के बीज और अन्य कई तरह के बीज
दिए जाते हैं। इस कठोर आहार नियम का पालने पर शरीर की सारी चर्बी निकल जाती
है। इसके बाद फिर अगले 1000 दिनों तक उस भिक्षु को ऊरूषी नाम से वृक्ष से
बनी जहरीली चाय पिलाई जाती है। इससे उस भिक्षु को जबरदस्त उल्टियों होती है
तथा शरीर का सारा पानी, खून और तरल पदार्थ सूख जाता है और बचती है तो केवल
चमड़ी और हडि्डयां।
पूजा जाता है भगवान की तरह-
हडि्डयों
के ढ़ांचे बन चुके भिक्षु में फिर भी प्राण होते हैं। इसके बाद शुरू होती
है असली सेल्फ ममीफिकेशन की प्रक्रिया। जी हां, इसके बाद उस भिक्षु को
पत्थर से बनी एक छोटी सी समाधि में हवा का एक सुराख बनाकर एक ही मुद्रा में
बैठाकर बंद कर दिया जाता है। इसके बाद उसे दूसरी दुनिया का इंसान मान लिया
जाता है। फिर वो भिक्षु जब तक प्राण रहते हैं तब तक रोज घंटी बजाकर यह
बताता है कि वो अभी जिंदा है। जिस दिन घंटी बजना बंद हो जाती है उस दिन
समाधि में हवा के सुराख को भी बंद कर अगले 1000 दिन तक फिर सील कर दिया
जाता है। यह समय गुजरने पर उस भिक्षु को फिर से वापस निकाला जाता है और
उसका ममीफिकेशन पूरा होना मान लिया जाता है। उसे दर्शनों के लिए मंदिर में
लेजाकर रख दिया जाता है और पूजा की जाती है। हालांकि आपको बता दें कि जापान
की सरकार ने अब इस परंपरा अब रोक लगा दी है।
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