इस कहानी के सामने आते ही जिला प्रशासन ने उसके पुनर्वास की कोशिशें तेज कर दी हैं। चंद्रशेखर गौड़ा नाम के इस व्यक्ति ने वर्ष 1999 में नेल्लुरू कामराजे को-ऑपरेटिव सोसायटी से कर्ज लिया था, लेकिन वे इस कर्ज को चुका नहीं पाए। तब सोसायटी ने वर्ष 2002 में वसूली की कार्यवाही शुरू की। अक्टूबर 2002 में उसकी जमीन 1.2 लाख रुपए में नीलाम कर दी और घर भी जमींदोज कर दिया।
इसके बाद गौड़ा ने सैकंड हैंड कार खरीदी और इसे सुल्लिया के बॉर्डर से सटे जंगल में खड़ा कर इसे ही अपना घर बना लिया। वह पिछले 14 सालों से इस जंगल में हाथों से टोकरियां बनाने का काम करता है और सप्ताह में एक बार 21 किलोमीटर पैदल चल कर सुल्लिया में 40 रुपए प्रति पीस के हिसाब से बेच आता है।
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