लंबे वक्त से यह दावा किया जाता रहा था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के खजाने को लूटा गया था लेकिन कोई साक्ष्य न होने के चलते इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी थी। अब नेताजी से जुड़ी फाइलों के जरिए यह दावा सही साबित होता दिख रहा है। हाल ही में सार्वजनिक की गई फाइलें बताती हैं कि खजाना लूटे जाने की बात नेहरू सरकार को पता थी। 1951 से 1955 के बीच टोक्यो और नई दिल्ली के बीच इस बारे में संवाद भी हुआ था। नेहरू ने खजाना लूटने के आरोपी अफसर को बनाया था।
गौरतलब है कि रिकॉर्ड्स के मुताबिक, नेताजी करीब 80 किलो सोने की ज्वैलरी लेकर सफर कर रहे थे। 1945 में इनकी कीमत करीब 1 करोड़ रुपए थी। प्लेन क्रैश में नेताजी का सामान बुरी तरह जल गया। उसका कुछ ही हिस्सा बचा था। जिसे जापान भेज दिया गया। 1952 में इसे जापान से नई दिल्ली लाया गया। इसमें उस वक्त केवल 11 किलो ज्वैलरी का हिस्सा मिला था।
इतिहासकार ह्यू तोये के मुताबिक, बोस चाहते थे कि उनकी आजाद हिंद सरकार को जापानी सोल्जर्स की कम से कम मदद लेनी पड़े। इसके चलते उन्होंने जापानियों द्वारा जीती गई ब्रिटिश कॉलोनीज में रह रहे 20 लाख भारतीयों की मदद ली। महिलाओं ने आईएनए को अपनी ज्वैलरी डोनेट कर दी। 21 अगस्त, 1944 को रंगून में पब्लिकली पैसा इकट्ठा करने के प्रोग्राम में हीराबेन बेतानी नामक महिला ने अपने 13 नेकलेस दान कर दिए। इनकी कीमत उस समय 1.5 लाख थी।
एक फाइल में नेताजी के खजाने का जिक्र है। फाइल्स के मुताबिक खजाने से 7 लाख डॉलर की लूट हुई थी। इस बात का पहली बार जिक्र रिसर्चर अनुज धर ने अपनी किताब "इंडियाज बिगेस्ट कवरअप" में किया था। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि डिप्लोमैट्स की मुहैया कराई गई जानकारी को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नजरअंदाज कर दिया था और 1952 में नेहरू यह एलान भी कर दिया कि ताइवान में प्लेन हादसे में नेताजी की मौत हो चुकी है। 1953 में नेहरू ने खजाना लूटने के आरोपी एएस अय्यर को फाइव ईयर प्लान का पब्लिसिटी एडवाइजर बनाया था। डिक्लाइसिफाई होने के बाद नेशनल आर्काइव्स में रखी गईं फाइल्स बताती हैं कि नेहरू सरकार ने 1947 से 1968 तक नेताजी के परिवार की जासूसी भी करवाई।
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