सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

बाढ़ में मिली थी शनिदेव की प्रतिमा, आज तक गांव में नहीं हुई चोरी

हाल ही में सुर्खियों में छाने वाला महाराष्ट्र का छोटा सा गांव शिंगणापुर अपने शनि मंदिर के लिए विशेष पहचान रखता है। यहां के शनि मंदिर को लेकर कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। इस गांव में लोग अपने घरों पर कभी ताला नहीं लगाते, वरन यहां के घरों में कोई दरवाजा तक नहीं है, सभी कुछ शनि भगवान के भरोसे छोड़ दिया जाता है। गांव के लोग बताते हैं कि यहां आज तक कभी कोई चोरी नहीं हुई। आइए जानते हैं शिंगणापुर स्थित शनिदेव के मदिंर से जुड़ी कहानी...


बाढ़ में मिली थी शनिदेव की प्रतिमा

मान्यता है कि एक बार शिंगणापुर गांव में काफी बाढ़ आ गई। बाढ़ के पानी में सब कुछ डूबने लगा। उसी दौरान लोगों ने भयावह बाढ़ में किसी शिला को तैरते देखा। जब पानी का स्तर कुछ कम हुआ तो एक आदमी ने उस पत्थर को एक पेड़ पर देखा। ऐसा अजीबोगरीब पत्थर उसने आज तक नहीं देखा था। उसने लालचवश पत्थर को नीचे उतारा। उसे तोड़ने के लिए जैसे ही उसमें कोई नुकीली चीज मारी उस पत्थर में से खून बहने लगा।

यह देखकर वह डर गया और तुरंत उसने गांव वालों को यह बात बताई। सभी लोग उसकी बताई जगह पर पहुंचे और शिला को देखकर आश्चर्यजकित रह गए। परन्तु उस पत्थर का क्या करें, उन्हें समझ नहीं आया। रात को गांव के एक व्यक्ति के स्वप्न में शनिदेव आए और उन्होंने उस शिला को स्थापित करने का आदेश दिया। अगले दिन गांव वालों ने स्वप्न को सच मानकर उस प्रतिमा को स्थापित कर दिया। तभी से वह प्रतिमा बिना मंदिर के वहां विराजमान है।

बिना किसी छत्र-गुंबद के स्थापित हैं शनिदेव की मूर्ति

शनिदेव के इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां पर शनिदेव की प्रतिमा बगैर किसी छत्र या गुंबद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबुतरे पर विराजित हैं। यहां पर दिखने वाली काले रंग की शनीदेव की प्रतिमा लगभग 5 फीट 9 इंच लंबी और एक फीट 6 इंच चौड़ी है जो धूप, ठंड तथा बरसात में दिनरात खुले में है। रोजाना शनिदेव की मूर्ति पर सरसों के तेल से अभिषेक किया जाता है।

मंदिर में नहीं है पुजारी

शनि शिंगणापुर के बारे में यह प्रचलित है कि यहां "देवता हैं" लेकिन मंदिर नहीं, घर है लेकिन दरवाजा नहीं, वृक्ष है पर छाया नहीं, भय है पर शत्रु नहीं। यहां पर शनि अमावस और शनि जयंती पर लगने वाले मेले में करीब 10 लाख लोग आते हैं और हर रोज यहां लगभग 13 हजार से ज्यादा लोग दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर में कथित तौर पर कोई पुजारी नहीं है। भक्त प्रवेश करके शनि देव जी के दर्शन करके सीधा मंदिर से बाहर निकल जाते हैं। मंदिर में आने वाले भक्त अपनी इच्छानुसार यहां तेल का चढ़ावा भी देते हैं।

पीछे पलटकर नहीं देखने की है मान्यता

गांव में माना जाता है कि जो भी भक्त मंदिर के भीतर जाए वह केवल सामने ही देखता हुआ जाए। उसे पीछे से कोई भी आवाज लगाए तो मुड़कर देखना नहीं है। शनिदेव को माथा टेक कर सीधा-सीधा बाहर आ जाना है।

शनि जयंती पर प्रतिमा दिखाई देती है नीले वर्ण की

शिंगणापुर में सनी जयंती बड़े घूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन शनि देव की प्रतिमा नील वर्ण दिखती है। 5 दिनों तक यज्ञ और 7 दिन तक भजन-प्रवचन कीर्तन का सप्ताह कड़ी धूप में मनाया जाता है।

ऐसे पहुंचे शनि शिंगणापुर मंदिर

शिंगणापुर के आस-पास आप शिरड़ी, त्र्यंबकेश्वर, नासिक का भी आनंद ले सकते हैं। बारत के किसी भी कोने से यहां आने के लिए रेल सेवा का उपयोग किया जा सकता है। दिल्ली से मुंबई या जयपुर से मुंबई पहुंचकर शिरड़ी होते हुए भी शिंगणापुर पहुंचा जा सकता है।


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