पढ़कर
आप भी हैरान हो गए होंगे कि किसी मरे हुए व्यक्ति की शादी कैसे की जा सकती
है, लेकिन यह सच है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में नटबाजी समाज में पुरानी
परंपराओं को लोग आज भी मानते है। यहां मृत बच्चों की शादी भी धूमधाम से
करने का अनोखा रिवाज है।
हाल ही मीरपुर के रामेश्वर ने 18 साल पहले मर चुकी अपनी बेटी की शादी हरिद्वार के एक गांव में रहने वाले तेजपाल के मृत बेटे के साथ हिंदू रीति-रिवाज से सम्पन्न की। इस समुदाय में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहां दूल्हा-दुल्हन के प्रतीक के तौर पर गुड्डा-गुडिय़ा बनाए जाते हैं।
हाल ही मीरपुर के रामेश्वर ने 18 साल पहले मर चुकी अपनी बेटी की शादी हरिद्वार के एक गांव में रहने वाले तेजपाल के मृत बेटे के साथ हिंदू रीति-रिवाज से सम्पन्न की। इस समुदाय में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहां दूल्हा-दुल्हन के प्रतीक के तौर पर गुड्डा-गुडिय़ा बनाए जाते हैं।
बाल
विवाह का विरोधी यह गांव बच्चों के मरने के बाद भी उनके बालिग होने पर ही
उनका ब्याह रचाता है। यहां मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी मृत संतान भी
अविवाहित नहीं रहती। बारात मृत कन्या पक्ष के दरवाजे बैंड बाजे के साथ आती
है और शादी की सभी रस्में पूरी की जाती हैं। साथ ही उपनी सामर्थ्य के
अनुसार वर पक्ष को दान-दहेज भी दिया जाता है।रामेश्वर की बेटी
पूजा की 18 साल पहले 2 वर्ष की आयु में मौत हो गई थी। उसने बड़ी मुश्किल से
हरिद्वार के गाधारोना गांव में तेजपाल के घर मृत दूल्हे की तलाश की। शादी
के बाद विदाई भी की गई। करीब चार दर्जन बाराती बारात लेकर आए थे।
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