गुरुवार, 17 मार्च 2016

Sedition Law Under Review, Government Will Call All Party Meet Says Rajnath Singh

देशद्रोह कानून हटाने के लिए बुलाई जाएगी सर्वदलीय बैठकः राजनाथ 

लगभग सभी दलों के सांसदों के मांग पर सरकार आईपीसी की धारा 124(ए) को हटाने का विचार कर रही हैं। सरकार ने बुधवार केा स्वीकार किया कि राजद्रोह से जुड़े कानून की परिभाषा बहुत व्यापक है। सरकार ने कहा कि इस कानून पर लॉ कमीशन विचार कर रहा है।



चर्चा के लिए बुलाई जाएगी सर्वदलीय बैठक

होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने कहा कि इस कानून पर लॉ कमीशन की रिपोर्ट मिलने के बाद इस मुद्दे पर चर्चा के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई जाएगी। सरकार ने हालांकि विपक्ष का यह आरोप खारिज कर दिया कि वह इस कानून का अंधाधुंध इस्तेमाल कर रही है। सरकार ने कहा कि जेएनयू मामले के अलावा राजद्रोह के ज्यादातर मामले दिल्ली के बाहर ही दर्ज किए गए हैं।

42वीं लॉ कमीशन के रिपोर्ट ने माना कानून में खामी
सवालों के जवाब में गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने कहा कि सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले किसी भी शख्स के खिलाफ राजद्रोह के कानून के तहत मुकदमा हो सकता है। संशोधन के सुझाव आए हैं क्योंकि इसकी परिभाषा बहुत व्यापक है। मैं चाहता हूं कि लॉ कमीशन इसकी समग्र समीक्षा करे। उन्होंने कहा कि कमीशन ने अपनी 42वीं रिपोर्ट में कहा था कि राजद्रोह के कानून में खामी है, लेकिन उसने इसे खत्म करने के पक्ष में राय नहीं दी थी।

विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि जैसा कि मंत्री ने कहा है कि राजद्रोह के कानून की परिभाषा व्यापक है, तो अगर सरकार के खिलाफ बोलने पर प्रतिबंध लग जाए तो देश के आधे दल देशविरोधी हो जाएंगे। उन्होंने सवाल किया कि क्या सांप्रदायिक आधार पर लोगों को लड़ाने वाले भी सेडिशन लॉ के दायरे में आएंगे।

होम मिनिस्टर ने कहा कि हम विपक्ष के नेता की इस राय से शत प्रतिशत सहमत हैं कि सांप्रदायिक आधार पर लोगों को बांटने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

सबसे ज्यादा केस बिहार में
गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजु ने राज्यसभा में बताया कि देशद्रोह के सबसे ज्यादा मामले बिहार में दर्ज किए गए हैं। बिहार में दर्ज 16 मामलों में 28 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इसके बाद झारखंड, केरल और ओडिशा का नंबर आता है।

महात्मा गांधी के खिलाफ इस्तेमाल हुआ था कानून
देशद्रोह कानून 1860 में बनाया गया। फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया। अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और बालगंगाधर तिलक के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया था। हैरानी की बात यह है कि अब ब्रिटेन ने यह कानून अपने देश से हटा दिया है, लेकिन भारत में यह आज भी मौजूद है।

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